“नदियों का मिटता अस्तित्व, संरक्षण की अनिवार्यता”
राजीव रंजन की रिपोर्ट –
“रात भर घाट पर सिर टिकाए फूट फूट कर रोती रही नदी , समंदर सुन कहां सका अपनी ही लहरों के शोर में उसकी सिसकियों की आवाज” भारतीय संस्कृति के उद्भव और विकास के लिए नदियां अजस्र स्रोत के रुप में आदिकाल से कार्य करती है। प्रखंड क्षेत्र के सैकड़ों गांवों के किसानों की जीवनधारा कही जाने वाली बेलहरनी नदी का अस्तित्व धीरे धीरे समाप्ति की ओर जा रही है। वर्तमान समय में मानव आपदा के कारण नदी में काफी प्रदूषण फैला हुआ है। जमुई जिले के बटिया जंगल से निकलने वाली नदी बेलहरनी बांका जिले के बेलहर , मुंगेर जिले के संग्रामपुर , तारापुर , बरियारपुर प्रखंड के ग्रामीण इलाकों से बहती हुई घोरघट गांव के पास गंगा में मिल जाती है। यह नदी कभी कृषि एवं किसानों के लिए जीवनदायिनी हुआ करती थी। कभी कगारों को तोड़कर बहने वाली मतवाली नदी अब लुप्त होने के कगार पर है। अब कल कल , छल छल की आवाज इस नदी से सुनाई नहीं पड़ती है। जिसकी चमचमाती बालुका राशि पर बच्चे घरौंदा बनाते थे , अठखेलियां किया करते थे,रेत पर लेटे रहते थे अब वो कहीं दिखाई नहीं पड़ती है। नदियों का जल प्रवाह कम होने से लोगों के द्वारा अतिक्रमण करना शुरू कर दिया गया जो लगातार जारी है। जो नदी कभी शोर मचाती थी अब बिल्कुल शांत हो गई है क्योंकि यह नदी, नदी नहीं नालावत हो गई है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार पृथ्वी में 70 प्रतिशत हिस्से में जल है जिसमें लगभग 95 प्रतिशत पानी पीने योग्य नहीं है । सिर्फ 25 प्रतिशत ही जल मीठा है जो पीने योग्य है ये पीने योग्य जल हमें नदी , तालाब तथा झीलों से प्राप्त होता है। नदियों के सुनहरी रेत का लगातार उत्खनन होते रहने से नदियों का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर पहुंच गया है। वेसुमार नदी से रेत निकलना मां के कोख उजाड़ने जैसा अपराध की श्रेणी में आता है जो अनवरत जारी है। लगातार नदियों से रेत उत्खनन के पश्चात नदियों को मिट्टी युक्त छोड़ दिए जाने से नदी कीचड़ युक्त में तब्दील हो गया है ।
नदियाँ हमारी प्रकृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उनका अस्तित्व हमारे जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज, दुनिया भर में नदियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं ।
नदियों में औद्योगिक कचरा, घरेलू अपशिष्ट, और रसायन सीधे प्रवाहित किए जाते हैं, जिससे जल प्रदूषण होता है। यह न केवल जलीय जीवों के लिए हानिकारक है, बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव डालता है। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश के पैटर्न में बदलाव आ रहा है। इसके परिणामस्वरूप नदियों का जल स्तर घट रहा है और कई नदियाँ सूख रही हैं। कृषि, उद्योग, और घरेलू उपयोग के लिए नदियों से अत्यधिक मात्रा में पानी लिया जाता है, जिससे नदियों का जल स्तर तेजी से घटता है। यह स्थिति विशेष रूप से उन क्षेत्रों में गंभीर है जहाँ पानी की उपलब्धता पहले से ही सीमित है।
वनों की कटाई से जलग्रहण क्षेत्रों का विनाश होता है, जिससे वर्षा जल का संचयन कम होता है और नदियों में जल की मात्रा घट जाती है। नदियों पर बाँध और बैराज निर्माण से उनके प्राकृतिक प्रवाह में बाधा आती है। इससे नदियों की पारिस्थितिकी तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और वे सूखने लगती हैं।
नदी के विलुप्तिकरण से जलीय जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है , नदियों के सूखने से मछलियाँ, कछुए, और अन्य जलीय जीवों का जीवन संकट में पड़ जाता है। यही कारण है कि कई प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।
नदियों के सूखने से कृषि और पीने के पानी की उपलब्धता पर बुरा असर पड़ता है। इससे खाद्य संकट और पेयजल संकट उत्पन्न होता है। जल विद्युत उत्पादन, मछली पालन, और पर्यटन उद्योग पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिससे अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होता है।
हमारे लिए आवश्यक है कि हम समय रहते उचित समाधान ढूंढ लें वरना आने वाली नई पीढ़ी शायद ही स्वीकार्य कर पाएगा कि यहां कभी पावन नदियां बहती थी क्योंकि उनका अस्तित्व केवल कहानियों तक सीमित रह जायेगी l
नदियों को बचाने का समाधान यही है कि हमें औद्योगिक और घरेलू कचरे को नदियों में डालने से रोकना चाहिए। इसके लिए कठोर कानून बनाए जाने चाहिए और उनका सख्ती से पालन होना चाहिए। जल के विवेकपूर्ण उपयोग और संरक्षण के उपाय अपनाए जाने चाहिए। वर्षा जल संचयन और पुनर्चक्रण की तकनीकों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। वनों की कटाई रोकने और अधिक से अधिक वृक्षारोपण करने से जलग्रहण क्षेत्रों को पुनर्जीवित किया जा सकता है। नदियों पर बाँध और बैराज निर्माण करते समय उनके पर्यावरणीय प्रभावों का समुचित मूल्यांकन किया जाना चाहिए और सतत विकास की नीतियों को अपनाया जाना चाहिए। नदियों की विलुप्ति को रोकना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। हमें इस दिशा में तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि नदियाँ और उनके साथ हमारा भविष्य सुरक्षित रह सके।