– माता सीता ने पहली बार मुंगेर जिले के बबुआ घाट पर गंगा के बीच स्थित पर्वत पर सूर्य को दिया था अर्घ्य।
– वर्तमान में यह सीताचारण मंदिर के नाम से देश भर में है विख्यात, योग शिक्षा के साथ सीता चरण के सालों भर दर्शन करने आते है श्राद्धालु।
– मुंगेर के योग मूर्धन्य स्वामी सत्यानंद ने भी अपने उपदेश मे कई बार किया है जिक्र
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मुंगेर, लोक आस्था के महापर्व छठ का मुंगेर में विशेष महत्व है। इस पर्व को लेकर यहां चार लोककथाएं प्रचलित हैं। उनमें से एक कथा के अनुसार सीता माता ने यहां छठ व्रत कर इस पर्व की शुरुआत की थी। आनंद रामायण के अनुसार मुंगेर जिले के बबुआ घाट से दो किलोमीटर दूर गंगा के बीच स्थित पर्वत पर ऋषि मुद्गल के आश्रम में मां सीता ने छठ किया था। माता सीता ने जहां पर छठ किया था वह स्थान वर्तमान में सीता चारण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। तब से अंग व मिथिला सहित पूरे देश मे छठ व्रत मनाया जाने लगा।
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आनंद रामायण में है इसका वर्णन
सीता चरण पर कई वर्षों से शोध कर रहे शहर के प्रसिद्ध प्रोफेसर सुनील कुमार सिन्हा के मुताबिक आनंद रामायण के पृष्ठ संख्या 33 से 36 तक सीता चरण और मुंगेर के बारे में उल्लेख किया गया है। आनंद रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम ने ब्राह्मण रावण का वध किया था, इसलिए राम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। पापमुक्ति के लिए आयोध्या के कुलगुरु मुनि वशिष्ठ ने तत्कालीन मुद्गल (मुंगेर के पूर्व का नाम) में मुद्गल ऋषि के पास भगवान राम व सीता माता को भेजा। भगवान राम को ऋषि मुद्गल ने वर्तमान कष्टहरणी घाट में ब्रह्महत्या मुक्ति यज्ञ कराया और माता सीता को अपने आश्रम में ही रहने के आदेश दिए। चूंकि महिलाएं यज्ञ में भाग नहीं ले सकती थीं, इसलिए माता सीता ने ऋषि मुद्गल के आश्रम में रहकर ही उनके निर्देश पर सूर्योपासना का पांच दिन तक चलने वाला छठ व्रत किया था।
सूर्य उपासना के दौरान मां सीता ने अस्ताचलगामी सूर्य को पश्चिम दिशा की ओर तथा उदयाचलगामी सूर्य को पूरब दिशा की ओर अघ्र्य दिया था। आज भी मंदिर के गर्भ गृह में पश्चिम और पूरब दिशा की ओर माता सीता के चरणों के निशान मौजूद हैं। शिलापट्ट पर सूप, डाला और लोटा के निशान हैं।
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साल में छह माह गंगा के गर्भ में समाया रहता है सीताचारण मंदिर
मंदिर का गर्भ गृह साल में छह महीने तक गंगा के गर्भ में समाया रहता है तथा गंगा का जलस्तर घटने पर छह महीने ऊपर रहता है। मंदिर के राम बाबा ने बताया कि पहले शिलापट्ट पर बने निशान की लोग यहां आकर पूजा-पाठ करते थे। 1972 में सीताचरण में संतों का सम्मेलन हुआ था। उसी समय लोगों के आग्रह पर सीताचारण मंदिर बनाने का फैसला लिया गया था। यह मंदिर 1974 में बनकर तैयार हुआ था। मंदिर के प्रांगण में छठ करने से लोगों की मनोकामना पूर्ण होती है।
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पदचिन्हों में है समानता
यहां मौजूद सीता के चरणों के निशान एवं भारत के अन्य मंदिरों में मौजूद पद चिन्ह एक समान हैं। इंग्लैंड के प्रसिद्ध यात्री सह शोधकर्ता गियर्सन जब भारत आए थे तो उन्होंने इस मंदिर के पदचिन्हों का मिलान मां सीता के जनकपुर मंदिर, चित्रकूट मंदिर, मिथिला मंदिर आदि में मौजूद पदचिन्हों से करवाया तो सभी पैरों के निशान में समानता पाई गई थी। इस तथ्य का उल्लेख उन्होंने अपनी पुस्तक में भी किया है।
कुणाल भगत