आजादी की लड़ाई मे जलियावाला बाग से कम अहमियत नही रखता तारापुर, 34 शहीदों ने खून से लिखी थी आजादी की पटकथा।
संग्रामपुर के सुपौर जमुआ 'श्री- भवन' था क्रांतिकारियों के गुप्त रणनीति का ठिकाना
राजीव रंजन की रिपोर्ट।
– गोलीकांड के बाद 34 पार्थिव शव मिले जबकि अन्य दर्जनों शवों को गंगा मे बहा दिया गया था।
– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मन की बात कार्यक्रम में कर चुके हैं जिक्र.
राजा कर्ण की धरती मुंगेर से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तारापुर , यह वो जगह है जहां से आजादी के दिवानों ने अपनी लहू से इंकलाब जिंदाबाद,भारत माता की जय, वंदे मातरम् लिख कर ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिला कर रख दिया था, अंतिम सांस तक खून के एक –एक कतरे को देश की आजादी के लिए समर्पित कर दिया था, 15 फरवरी 1932 ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भीषण नरसंहार के लिए जाना जाता है l अब बताते हैं आपको अंग्रेज हुकूमत से आजादी के लिए जो संग्राम चल रहा था उस समय की। सन 1931 को सरदार भगत सिंह, सुखदेव एवम राजगुरु की फांसी ने पूरे देश में युवाओं में उबाल ला दिया था। कुछ ही समय बाद 1931 में गांधी-इरविन समझौता भंग हो गया। 27 दिसम्बर 1931 को गोलमेज सम्मेलन लंदन से लौटते ही 1 जनवरी 1932 को जब महात्मा गांधी ने पुन: सविनय अवज्ञा आंदोलन को प्रारंभ किया तो ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस को अवैध संगठन घोषित कर सभी कांग्रेस कार्यालयों पर कांग्रेस का झंडा उतार कर ब्रिटिश झंडा यूनियन जैक लहराने का निर्देश दिया। 4 जनवरी को गांधी जी सहित सरदार पटेल, नेहरू और राजेंद्र प्रसाद जैसे दिग्गज नेताओं सहित हर प्रांत के प्रमुख लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।
मुंगेर मे भी श्रीकृष्ण सिंह, नेमधारी सिंह, बासुकीनाथ राय , निरापद मुखर्जी, पंडित दशरथ झा,दीनानाथ सहाय, मंगल शास्त्री आदि प्रमुख नायक गिरफ्तार हो चुके थे।
ऐसे में युद्धक समिति के प्रधान सरदार शार्दुल सिंह कवीश्वर द्वारा जारी संकल्प पत्र में स्पष्ट आह्वान किया गया कि सभी सरकारी भवनों पर तिरंगा झंडा राष्ट्रीय ध्वज लहराया जाए एवम प्रत्येक थाना क्षेत्र में पांच ध्वजवाहकों का धावक जत्था राष्ट्रीय झंडा लेकर अंग्रेज सरकार के भवनों पर धावा बोलेगा। इस आदेश को कार्यान्वित करने के लिए कई क्रांतिकारीयो ने अपने छुपने के गुप्त ठिकानों मे एक संग्रामपुर प्रखंड के सुपोर-जमुआ गांव के ‘श्री भवन’ में बैठक की। बैठक में मदन गोपाल सिंह (ग्राम सुपोर-जमुआ), त्रिपुरारी कुमार सिंह (सुपोर-जमुआ), महावीर प्रसाद सिंह (महेशपुर), कार्तिक मंडल (चनकी) और परमानन्द झा (पसराहा) सहित दर्जनों सदस्यों का धावक दल चयनित किया गया। 15 फरवरी 1932 सोमवार को दोपहर 2 बजे धावक दल ने आजादी के दीवाने हाथ में झंडा और होठों पर वंदे मातरम् भारत माता की जयघोष के साथ तारापुर थाना पर धावा बोला और अंतत: ध्वज वाहक दल के मदन गोपाल सिंह ने तारापुर थाना पर तिरंगा फहरा दिया । मामला ज्यादा उग्र हुआ तो उस वक्त के कलेक्टर ईo ओo लीo और एस.पी. डब्लू एस मैग्रेथ ,सशस्त्र पुलिस बल के साथ थाना परिसर में मौजूद थे, आदेश मिलते ही निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर सशस्त्र पुलिस बल ने गोलियां चला दी जिसमें 34 क्रांतिकारी शहीद हुए एवं सैकड़ों क्रांतिकारी घायल हुए। तिरंगे की आन पर खुद को बलिदान कर देने वाले 34 वीर शहीदों में से मात्र 13 की ही पहचान हो पाई थी, 21 अज्ञात शव को वाहन में लादकर सुल्तानगंज गंगा में बहा दिया था,
ज्ञात शहीदों में विश्वनाथ सिंह (छत्रहार), महिपाल सिंह (रामचुआ), शीतल चमार (असरगंज), सुकुल सोनार (तारापुर), संता पासी (तारापुर), झोंटी झा (सतखरिया), सिंहेश्वर राजहंस (बिहमा), बदरी मंडल (धनपुरा), वसंत धानुक (लौढि़या), रामेश्वर मंडल (पड़भाड़ा), गैबी सिंह (महेशपुर), अशर्फी मंडल (कष्टीकरी) तथा चंडी महतो (चोरगांव) थे। इसके बाद तो मानो पूरे भारत मे तहलका मच गया। लंदन मे बैठे ब्रिटिश हुक्मरानों ने भी इस नरसंहार की गूंज सुनी।
कहा जाता है कि आजादी के पहले 1942 मे नेहरू जब तारापुर आए थे तो उन्होंने भी 34 शहीदों के बलिदान का उल्लेख करते हुए कहा था कि The faces of the dead freedom fighters were blackened in front of the resident of Tarapur नमन किया था और कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में भी हर साल तारापुर दिवस मनाने का निर्णय भी लिया गया था।
आजादी के बाद शहीदों की स्मृति में मुंगेर से 45 कि.मी. दूर तारापुर थाना के सामने शहीद स्मारक भवन का निर्माण 1984 में पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह ने करवाया था। तारापुर के प्रथम विधायक बासुकीनाथ राय, नंदकुमार सिंह, जयमंगल सिंह, हित्लाल राजहंस आदि के प्रयास से इन बलिदानियों को याद रखा गया l पर सबसे दिलचस्प मोड़ उस वक्त आया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपनी मन की बात में उल्लेख कर वीर सपूतों को श्रद्धांजलि दी।
जिससे एक नई ऊर्जा का संचार स्थानीय देशभक्तों में हुआ। वहीं वर्ष 2023 में तारापुर शाहिद दिवस को राजकीय समारोह के रूप में प्रतिवर्ष 15 फरवरी को बनाने की घोषणा की। सरकार के द्वारा निर्माण कराए गए शहीद वीरों की प्रतिमाएं और पार्क को पुष्पमाला से सजाकर पहली बार 2023 में यह समारोह आयोजित किया गया । बिहार सरकार पूरे थाना परिसर को ऐतिहासिक जालियाबाला बाग के तरह संरक्षित कर पर्यटन स्थल का दर्जा दिया जाना चाहिए और इन वीर सपूतों को पाठ्य पुस्तक में भी स्थान मिलनी चाहिए l बाकी बची हुई 21 शहीदों की प्रतिमा को भी जल्द से जल्द स्थापित कर उन शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित होगी l