नहीं रही सुप्रसिद्ध लोकगायिका शारदा सिन्हा ।

राजीव रंजन की रिपोर्ट-
पटना/- प्रसिद्ध लोकगायिका एवं पद्मश्री व पद्म भूषण से सम्मानित शारदा सिन्हा जी का मंगलवार देर शाम देहांत हो गया। वो पिछले कई दिनों से दिल्ली एम्स में भर्ती थी और वेंटिलेटर सपोर्ट पर भी थी। शारदा सिन्हा के पुत्र अंशुमन सिन्हा ने सोशल मीडिया पर अपने मां के निधन की जानकारी दी।
शारदा सिन्हा जो की एक सुप्रसिद्ध भारतीय लोकगायिका थी और भोजपुरी, मैथिली और मगही संगीत में अपने योगदान के लिए जानी जाती हैं। उनका जन्म 1 अक्टूबर 1952 को सुपौल जिले के हुलसा में हुआ था। उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा पटना में पाई और बाद में पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की और संगीत में उत्तर प्रदेश से मास्टर डिग्री प्राप्त की। उनके पिता सुखदेव ठाकुर शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी थे। शारदा सिन्हा ने भारतीय शास्त्रीय संगीत में भी प्रशिक्षित किया, लेकिन उनका झुकाव हमेशा लोक संगीत की ओर रहा। अपने करियर की शुरुआत उन्होंने आकाशवाणी पटना से की, जहाँ उनके गाए लोकगीतों ने उन्हें पहचान दिलाई।शारदा सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत में ही लोक संगीत को एक नया आयाम दिया और अपनी मधुर आवाज़ से लाखों लोगों का दिल जीत लिया। उन्होंने 1974 में पहली बार भोजपुरी गीत गाना शुरू किया। उनके गीतों में पारंपरिक भारतीय संस्कृति की झलक और बिहार-उत्तर प्रदेश के लोक जीवन का चित्रण मिलता है।
उनके गाए हुए गीत, जो अक्सर त्योहारों, शादियों और उत्सवों से जुड़े होते हैं।
शारदा सिन्हा के गाए छठ गीत विशेष रूप से लोकप्रिय हैं और छठ पूजा के अवसर पर हर जगह सुनाई देते हैं। छठ महापर्व में तो हर जगह शारदा सिन्हा द्वारा गाए गए लोकगीत सुनने को मिलते हैं, एक और जहाँ आज बिहार- उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में छठ पर्व की शुरुआत नहाए खाए से हो गई है तो वहीं दूसरी ओर शारदा सिन्हा जी का यूं चले जाना हर किसी के हृदय को झकझोर कर रख दिया।
उनके द्वारा गाए गए कुछ प्रसिद्ध छठ गीत जैसे “केलवा के पात पर उगेल न सुरुजमल”, “उगी है सुरुज देव भइल भिनुसार” छठ पर्व के अवसर पर घर-घर में गुंजायमान होते हैं ।
1989 में उन्होंने “कहे तोसे सजना ये तोहरी सजनिया गाने” से बॉलीवुड में एंट्री ली।
हाल ही में उन्होंने ” दुखवा मिटाईं छठी मैया रउए असरा हमार ” गीत गाया था, जो की अस्पताल से ही उनके पुत्र द्वारा रिलीज़ की गयी थी,शायद किसी ने ये कल्पना भी न की होगी की ये उनका आखिरी गीत होगा।
शारदा सिन्हा को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया , जिनमें पद्म भूषण और पद्म श्री शामिल हैं। उनके संगीत ने न केवल बिहार और उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे भारत में लोक संगीत को एक अलग पहचान दिलाई है।
उनके करियर की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि उन्होंने बिहार, उत्तर प्रदेश और आसपास के क्षेत्रों की लोक-संस्कृति को देश-विदेश में पहचान दिलाई। उनके गीतों में भोजपुरी, मैथिली और मगही जैसी भाषाओं का प्रयोग होता था, जो उत्तर भारत के लोक जीवन का प्रतिबिंब हैं।