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सम्राट अशोक को लेकर भाजपा और नीतीश जी की पार्टी में घमासान मचा हुआ है

सम्राट अशोक को लेकर भाजपा और नीतीश जी की पार्टी में घमासान मचा हुआ है. दरअसल यह विवाद 2021 के साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत नाटक ‘सम्राट अशोक’ को लेकर है. यह एक रहस्य लगता है कि अपने 60 वर्षों के इतिहास में साहित्य अकादमी ने पहली मर्तबा पुरस्कार के लिए एक नाटक को चुना है. जबकि संगीत नाटक अकादमी द्वारा 2001 में नाटक विधा के लिए ही भीष्म साहनी के साथ दयाप्रकाश जी को भी सम्मानित किया जा चुका है. पुनः उसी विधा में साहित्य अकादमी द्वारा भी पुरस्कार दिया जाना समझ के बाहर है.
पुरस्कार मिलने के बाद 31 दिसंबर 2021 के हिंदुस्तान में दिए गए साक्षात्कार में दया प्रकाश सिन्हा कहते हैं कि मैं राष्ट्रवादी साहित्यकार हूं. पहली बार साहित्य अकादमी ने किसी राष्ट्रवादी साहित्यकार को पुरस्कृत किया है. दैनिक जागरण में दिए गए साक्षात्कार में दया प्रकाश जी कहते हैं कि मैं सनातनी विचारधारा को मानता हूं. संघ का स्वयंसेवक हूँ. लेकिन मेरे लेखन से इसका कोई संबंध नहीं है. विचारधारा और रचनात्मकता दो अलग चीजें हैं.
सम्राट अशोक और उनका काल नाटककारों का काफी प्रिय विषय रहा है. बहुतों ने सम्राट अशोक और उनके काल को केंद्र बनाकर लिखा है. अब तक अशोक पर जितने भी नाटक लिखे गए हैं सब कलिंग विजय के बाद युद्ध, हिंसा और रक्तपात के बाद हुए उनके हृदय परिवर्तन तथा हिंसा से विमुख होकर बुद्ध की ओर उनके उन्मुख होने को ही लेखकों ने विषय वस्तु बनाया है.
लेकिन दया प्रकाश सिन्हा के इस नाटक का उद्देश्य जैसे अशोक को खलनायक के रूप में ही प्रस्तुत करना ही है. सत्ता के लिए भाइयों की निर्मम हत्या, राज्य विस्तार में अड़चन आने वाले कलिंग राज्य के लाखों लोगों को मार डालना, अपनी कामवासना को शांत करने के लिए चारित्रिक पतन आदि. ऐसा लगता है जैसे दया प्रकाश जी ने एक एजेंडा के तहत इस नाटक को लिखा है. उन्होंने स्पष्ट तौर पर कुबूल किया है कि संघ के साथ उनका जुड़ाव रहा है लेकिन इस नाटक का संबंध संघ के विचारधारा के साथ नहीं है. लेकिन इससे यह सवाल समाप्त नहीं होता है कि आखिर अशोक को एक खलनायक के रूप में पेश करने के पीछे उनका तात्पर्य क्या है ! इसके साथ ही यह सवाल भी उठता है कि ऐसे नाटक को साहित्य अकादमी ने पुरस्कृत कर इसको प्रतिष्ठित क्यों किया?

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