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प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ० उषा किरण खान के निधन से हिन्दी साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति।

रविवार को दोपहर राजधानी पटना के मेदांता में हृदयाघात से उनका निधन हो गया l


पद्मश्री , साहित्य अकादमी, भारत भारती, प्रवोध सम्मानों से विभूषित प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ० उषा किरण खान के निधन से हिन्दी साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति हुई है l रविवार को दोपहर राजधानी पटना के मेदांता में हृदयाघात से उनका निधन हो गया l वह लगभग 80 वर्ष की थी l उनके निधन की खबर से मिथिलांचल समेत पूरे बिहार में शोक की लहर दौड़ गई l बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ० उषा किरण खान के निधन पर गहरी शोक व संवेदना व्यक्त की है।
मुख्यमंत्री ने अपने शोक संदेश में कहा कि स्व० डॉ० उषा किरण खान प्रसिद्ध साहित्यकार एवं लेखिका थीं एवं उनके के निधन से हिन्दी एवं मैथिली साहित्य जगत् को अपूरणीय क्षति हुयी है। मुख्यमंत्री ने दिवंगत आत्मा की चिर शांति तथा उनके परिजनों को दुख की इस घड़ी में धैर्य धारण करने की शक्ति प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है।
डॉ. उषा किरण खान का जन्म 7 जुलाई 1945 को लहरियासराय, दरभंगा (बिहार) में हुआ था। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से भारतीय प्राचीन इतिहास और पुरातत्त्व विज्ञान में पीजी की डिग्री ली और बाद में मगध विश्वविद्यालय से पीएचडी किया। उन्होंने 1977 से लेखन की शुरुआत की।डॉ खान ने हिंदी के साथ-साथ मैथिली में भी दर्जनों उपन्यास व कहानियां लिखी थीं। इसके अलावा वह बाल साहित्य और नाटक लेखन के लिए भी जानी जाती थीं। मैथिली में लेखन के लिए डॉ खान को 2011 में उनकेद्वारा रचित उपन्यास भामिति : एक अविस्मरणीय प्रेम कथा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। वो पटना कॉलेज में प्राचीन भारतीय इतिहास और पुरातत्व विज्ञान की वह विभागाध्यक्ष भी रह चुकी थीं। उनकी अब तक पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें उपन्यास, कहानी, नाटक और बाल-साहित्य जैसी विविध विधाएँ शामिल हैं। उनकी रचित उपन्यास जैसे- फागुन के बाद, पानी पर लकीर, सिरजनहार (मैथिली) , कहानी संग्रह जैसे – घर से घर तक कांचही बांस( मैथिली), विवश विक्रमादित्य , नाटक जैसे – कहां गए मेरे उगना, मुसकौल बला (मैथिली), बाल नाटक जैसे – नानी की कहानी, डैडी बदल गए हैं एवं बाल उपन्यास – लड़ाकू जनमेजय काफी लोकप्रिय है तथा उनके लेखन का दायरा उपन्यास, कहानी, नाटक और बाल-साहित्य जैसी विविध विधाओं में फैला हुआ है। उनकी विभिन्न रचनाओं का उड़िया, बांग्ला, उर्दू और अंग्रेजी समेत अनेक भाषाओं में अनुवाद भी हो चुके हैं। पद्मश्री के अलावा उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद का हिन्दी सम्मान, राजभाषा विभाग का महादेवी वर्मा सम्मान, दिनकर राष्ट्रीय सम्मान और उत्तर प्रदेश शासन का भारत भारती समान समेत दर्जनों पुरस्कारों से नवाजा जाना ही साहित्य में उनके उल्लेखनीय योगदान का आईना हैं।
उनके निधन पर वरिष्ठ कवि और आलोचक विजय बहादुर सिंह ने कहा कि उषा जी का जाना साहित्य और समाज की अपूरणीय क्षति है। मिथिलांचल के एक सुप्रतिष्ठित और गांधीवादी परिवार में जन्म लेकर वे किशोर काल से ही अपने नागार्जुन काका के अभिभावकत्व में पलतीं और सज्ञान होती रहीं। उनके पिता और कवि श्री नागार्जुन गहरे मित्रों में थे।
विवाह भी उनका संस्कृत पंडितों के जाने-माने घराने में हुआ जहां विवाह के बाद वे उषा किरण चौधरी से उषा किरण खान के रूप में जानी गईं और अपनी कथा प्रतिभा के बल पर राष्ट्रीय स्तर की सुप्रतिष्ठित लेखिका के रूप में साहित्य अकादमी से पुरस्कृत भी की गईं। उनके पति दिवंगत रामचन्द्र खान भी भाषा विज्ञान के गहरे जानकारों में रहे यद्दपि आजीविका उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा की चुनी और ऊंचे पदों पर रहे। पिछले साल ही उनका निधन हुआ था। उनकी बड़ी बेटी अनुराधा शंकर मध्य प्रदेश पुलिस सेवा में पुलिस उपमहानिदेशक पद पर हैं।
वहीं डॉ. खान के प्रशंसकों ने कहा की उन्होंने रचित कहानी, उपन्यास,नाटकों का अनमोल भंडार साहित्य को समर्पित कर विदा हो गईं और उन सबके लिए वो सदैव अमर रहेंगी।

राजीव रंजन

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