जान लीजिए गीता प्रेस गोरखपुर के मालिक थे मुंगेर के : एक और पद्म पुरस्कार बिहार के नाम
पद्म पुरस्कार से सम्मानित राधेश्याम खेमका का जन्म मुंगेर के चौक बाजार मे हुआ था। उनके पिता का नाम सीता राम खेमका का मुंगेर मे किताब की दुकान थी। वे कई धार्मिक आंदोलन से भी जुड़े थे।
स्व राधे श्याम खेमका की प्ररंभिक पढ़ाई मुंगेर मॉडल स्कूल से हाई थी उसके बाद वे पढ़ने को मुज़्ज़फरपुर एवम उसके बाद बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से संस्कृत मे पीएचडी एवम लॉ की भी डिग्री प्राप्त किये थे।
पढ़ाई के बाद उनकी शादी गीता प्रेस गोरखपुर के मालिक हनुमान प्रसाद पोद्दार के बेटी से हुई और मरणोपरांत लगभग 40 वर्षो तक गीता प्रेस गोरखपुर का कार्यभार देखा। वे विश्व विख्यात मासिक पत्रिका कल्याण के भी आजीवन संपादक रहे। मुंगेर मे उनके रिश्ते के भाई सुशील कुमार खेमका का प्रसीद्ध शंकर वस्त्रालय है । उनके बड़े बेटे का नाम कृष्ण कुमार खेमका हैं जो बनारस मे रहते है।
जीवन परिचय
श्री राधेश्यामजी खेमका का जन्म 1935 में बिहार के मुंगेर जिले में एक सम्भ्रान्त मारवाड़ी परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री सीतारामजी खेमका सनातन धर्म के कट्टर अनुयायी तथा गोरक्षा आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर थे और माताजी एक धर्मपरायण गृहस्थ सती महिला थीं।
1956 से इनका परिवार स्थायी रूप से काशी में निवास करने लगा। काशी आने के बाद आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए. (संस्कृत) किया और साहित्यरत्न की उपाधि भी प्राप्त की। कुछ समय इनहोने कानून की पढ़ाई भी की और कागज का व्यापार भी किया। इनके पिताजी की धार्मिक प्रवृत्ति और सक्रियता के कारण संतों का सत्संग और सानिध्य इनको सदैव मिलता ही था, परन्तु काशी आने पर यह और सुगम हो गया। व्यवसाय के साथ-साथ इनका स्वाध्याय, सत्संग और संत समागम का व्यसन भी चलता रहा। इनका संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं पर पूर्ण अधिकार था। बाद में व्यवसाय को पुत्र-पौत्रादि को सौंप कर अपने जीवन के अन्तिम 38 वर्षों तक खेमकाजी गीता प्रेस और कल्याण की अवैतनिक सेवा करते रहे। संस्था से वे कोई आर्थिक लाभ नहीं लेते थे।
खेमकाजी ने काशी में 2002 में एक वेद विद्यालय की स्थापना की। इसमें आठ से बारह वर्ष आयु के बच्चों को छह वर्षीय पाठ्यक्रम में प्रवेश दिया जाता है। यह संस्था अब वटवृक्ष का रूप चुकी है और अपने विशिष्ट सिद्धांतों पर अडिग रहते हुए आज भी उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर होती जा रही है।
कुणाल भगत
(साभार गूगल)