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शिव की आज्ञा के कारण ही कोई भी आक्रांता नही ले जा सका शिवलिंग को , जाने शिवपुराण मे वर्णित शिव की आज्ञा।

वाराणसी, ज्ञानवापी मस्जिद मे सर्वे के बाद शिवलिंग मिलने के दावे के बीच विवादित स्थल को कुंल 9 ताले से सील कर दिया गया है और सुरक्षा के कड़े इन्तेज़ाम किये गए है। सील वजुखाने को 24 घंटे 2 सीआरपीएफ के जवान की निगरानी में रखा गया है। प्रत्येक शिफ्ट मे मंदिर सुरक्षा के प्रमुख एसपी रैंक के सुरक्षा अधिकारी और सीआरपीएफ के कॉममंडेन्ट औचक निरीक्षण भी करेंगे ताकि शिवलिंग को कोई नुकसान ना पहुचा सके। हिंदी पक्ष का साफ कहना है कि यह आकृति ही शिवलिंग है जिसे नुकशान पहुचाया गया है और मुस्लिम पक्ष का कहना है कि ये फव्वारा है जो सभी मस्जिद मे रहता है।
वही इतिहास के जानकारों के मुताबित चीनी यात्री फाहियान ने भी अपनी पुस्तक मे जिक्र किया है कि विक्रमादित्य द्वारा काशी मे आदि विश्वेश्वर मंदिर बनवाया गया था जिसमें पन्ने का शिवलिंग स्थापित था। कुछ इतिहासकारों का मानना हैं कि अकबर के मंत्री टोडरमल ने इस मंदिर का पुनः निर्माण कराया और हरे पन्ने का शिवलिंग ही स्थापित किया।
कुछ और रिसर्च पत्रिकाओं मे भी 18 बलिश्त ऊंचे पन्ने के हरे रंग के शिवलिंग का उल्लेख हुआ है एवम यह रिसर्च ब्रिटिश अधिकारी जेम्स प्रोसेप की पुस्तकों से भी संबंधित है जो भारत के इतिहास को लिपिबद्ध किये थे।
वही कोर्ट मे दिए पिटीशन मे भी तहखाने मे हरे रंग के पन्ने के शिवलिंग होने की बात कही गयी है जो सर्वे रिपोर्ट मे भी होने की संभावना है ।
इसका मतलब यह हुआ कि इतिहासकरो ने भी इस जगह को शिव लिंग से ही संबंधित माना है और यहां शिवलिंग होने के पुख्ता संभावनाएं है।

जाने क्यों आक्रांता इतने महंगे रत्न के शिवलिंग को नही ले जा सके अपने साथ।

प्रसिद्ध कथावाचक एवम ज्योतिषाचार्य पं गोविंद बल्लभ तीर्थ ( हिमालय क्षेत्र ) ने बिहार जनमत को बताया कि यह शिवलिंग काशी जो कि भोलेनाथ के त्रिशूल पर स्थित है से बाहर नहीं जा सकता क्योंकि पूरे जगत के अधिष्ठाता शिव ने खुद अविमुक्त नामक शिवलिंग की अपने त्रिशूल से ही यहाँ स्थापना की और आदेश दिया कि मेरे ही रूप ज्योतिर्लिंग तुम इस क्षेत्र को कभी मत छोड़ना। इसकी चर्चा शिव पुराण मे स्पष्ट रूप से है-

“अविमुक्तं स्वयं लिंग स्थापितं परमात्मना।
न कदाचित्वया त्याज्यामिंद क्षेत्रं ममांशकम्।”

बताते चले कि शिवलिंग को अपने साथ ले जाने की आक्रांताओ की तमाम कोशिशें नाकाम हुईं। जानकारों के मुताबित औरंगजेब , सिकंदर ,कुतुबुद्दीन, रजिया सुल्तान, एवम अन्य विदेशियों ने काशी के देवालयों पर भयंकर आक्रमण किया और मंदिर का खजाना लूटा लेकिन हज़ारो आक्रमन के बाद भी शिवलिंग को अपने साथ नहीं ले जा सके लेकिन शिवलिंग अपने स्थान से टस से मस इसलिए नहीं हुए कि क्योंकि वे सनातन देवाधिदेव शिव के आदेश का पालन कर रहे हैं।
इनके पहले भी 1809, 1937 एवम 1942 को ज्ञानवापी पर कब्जा के लिए झड़प होने के बाद मुस्लिम पक्ष कोर्ट गया था और वहां भी मुस्लिम पक्ष के दावे खारिज होते गए। बनारस के 1809 के दंडाधिकारी वॉट्सन ने भी अपनी रिपोर्ट मे कहा था कि ये क्षेत्र निश्चित रूप से हिन्दुओ का स्थल है। इस बार भी मामला कोर्ट के पास है और जल्द ही कोर्ट सब कुछ साफ कर देगा।

कुणाल भगत

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