रामफल मंडल की 81 वीं पुण्यतिथि आज, भारत छोड़ो आंदोलन में रहा था अहम योगदान ।
राजीव रंजन की रिपोर्ट-
– सीतामढ़ी से रामफल मंडल ने भारत छोड़ो आंदोलन का किया था नेतृत्व।
– तत्कालीन एसडीओ और इंस्पेक्टर को उतारा था मौत के घाट।
– महज 19 वर्ष की आयु में चढ़े थे फांसी पर
8 अगस्त 1942 को गांधी जी के आह्वान पर भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ हुआ, भारत छोड़ो आंदोलन का लक्ष्य अंग्रेजों को भारत से भगाना था। भारत छोड़ो आंदोलन मुख्यत: भारत में आए क्रिप्स मिशन, दूसरे विश्व युद्ध के कारण बढ़ती समस्याएं, 1942 में जापान सेना का भारतीय पूर्वी सीमा पर पहुंचना, इन सब घटनाओं के बाद गांधी जी ने कहा भारत में बन रही ऐसे स्थिति के जिम्मेदार ब्रिटिश है। अत: उन्होंने अंग्रेजों से भारत छोड़ने को कहा। 14 जुलाई 1942 को वर्धा में आयोजित कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग में क्विट इंडिया रेजोल्यूशन पारित हुआ। गांधी जी ने 8 अगस्त 1942 को मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान से महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन को प्रारंभ किया और करो या मरो का नारा दिया। हालांकि 9 अगस्त 1942 को गांधी जी को गिरफ्तार कर आगा खान पैलेस में रखा गया , लेकिन देखते ही देखते यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया।
इसी क्रम में बिहार के सीतामढ़ी से रामफल मंडल ने भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व किया। शहीद रामफल मंडल जिनका जन्म 6 अगस्त 1924 को सीतामढ़ी जिला अंतर्गत मधुरापुर गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम गोखुल मंडल तथा माता का नाम गरबी मंडल था। उनके नेतृत्व में धीरे-धीरे आंदोलन तेज होने लगा और ब्रिटिश ने आंदोलन को दबाने के लिए सीतामढ़ी मैं गोली कांड की जिसमें कई लोगों की जान चली गई। इस घटना के विरोध में 24 अगस्त 1942 को सीतामढ़ी का बाजपट्टी चौक पर हाथ में हथियार लिए दरोगा का इंतजार करने लगे। दारोगा को इसकी खबर लग गई और उसने वहां के तत्कालीन एसडीओ हरदीप नारायण सिंह को उस स्थान पर जाने को कहा जहां लोगों की भीड़ खड़ी थी। एसडीओ के साथ उस स्थान पर वहां के इंस्पेक्टर, हवलदार, चालक व चपरासी भी पहुंचे।
रामफल मंडल ने अपने फरसा के एक ही वार से एसडीओ का सर कलम कर उसे मौत के घाट उतार दिया और इंस्पेक्टर की भी हत्या कर दी, साथ पहुंचे दो हवलदारों को वहां मौजूद भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला।
हालांकि इस दरम्यान रामफल मंडल अपनी गर्ववती पत्नी जगपतिया देवी को अपने बड़े भाई के ससुराल नेपाल (लक्ष्मिनिया गाँव) में सुरक्षित पहुंचा आए।
वहीं इस घटना में फरार हुए चालक ने वहां के मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया। चालक के बयान के बाद रामफल मंडल,कपिल देव सिंह, हरिहर प्रसाद, बाबा नरसिंह दास समेत 4 हजार लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया। रामफल मंडल के सर पाँच हजार रुपए का इनाम भी रखा गया।
इसी क्रम में रामफल वापस सीतामढ़ी आ गए, सबने उन्हें नेपाल वापस लौटने को कहा परंतु वो नहीं माने। इनाम के लालच में उनके मित्र शिवधारी कुंवर ने छल से उन्हें अंग्रेज पुलिस द्वारा गिरफ्तार करवा दिया। रामफल मंडल एवं अन्य को गिरफ्तार कर भागलपुर सेन्ट्रल जेल में रखा गया । 15 जुलाई 1943 को बिहार की कांग्रेस कमिटी में रामफल मंडल एवं अन्य के सम्बन्ध में चर्चा हुई । बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी के आग्रह पर गाँधी जी ने प्रसिद्ध वकील सी.आर. दास और पी.आर. दास को क्रांतिकारियों के पक्ष में वकालत करने हेतु बिहार भेजा। वकीलों ने रामफल मंडल को सुझाव दिया कि कोर्ट में वे जज के सामने कहेंगे कि उन्होंने हत्या नहीं की है ।
भागलपुर कोर्ट में इस घटना को लेकर तीन बहस हुई,वकीलों के लाख मना करने के वाबजूद भी तीनों बहस में रामफल मंडल ने हत्या के आरोप को स्वीकार कर लिया । कोर्ट ने रामफल मंडल को फांसी की सजा सुनाई , 23 अगस्त 1943 को भागलपुर के सेन्ट्रल जेल में 19 वर्ष की आयु में वे हस्ते- हस्ते फांसी पर चढ़ गए।