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“मोहम्मद रफी: सदियों तक गूंजने वाली आवाज़ का शताब्दी उत्सव”।

राजीव रंजन

भारतीय संगीत के इतिहास में ऐसे कई गायक हुए हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा से लाखों दिलों को छुआ। लेकिन जब बात मोहम्मद रफी की होती है, तो उनकी आवाज़ की गहराई, मधुरता और विविधता का मुकाबला करना मुश्किल है। आज रफी साहब की 100 वीं जन्मतिथि है, रफी साहब सिर्फ एक गायक नहीं थे, वे एक युग थे, जिन्होंने संगीत प्रेमियों के दिलों में अपनी अमिट छाप छोड़ी। मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गाँव में हुआ। बचपन से ही संगीत में उनकी रुचि थी। उनके बड़े भाई हमीद ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें संगीत की तालीम दिलाई। लाहौर के उस्ताद अब्दुल वाहिद खान से उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली।
रफी साहब का करियर 1940 के दशक में शुरू हुआ। उनका पहला गाना “सोंचो क्या होगा” (1944) फिल्म गाँव की गोरी में था। लेकिन उन्हें असली पहचान 1947 की फिल्म जुगनू के गाने “यहाँ बदल बदल के” से मिली। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी आवाज़ का जादू 1940 से 1980 तक फिल्म संगीत में छाया रहा। मोहम्मद रफी की सबसे बड़ी खासियत उनकी आवाज़ का बहुमुखी स्वर था। वे किसी भी अभिनेता के लिए गाते समय उसकी भाव-भंगिमा को अपनी आवाज़ से जीवंत कर देते थे। चाहे वह दिलीप कुमार की गहरी संवेदनशीलता हो, देव आनंद की रोमांटिक छवि हो, या शम्मी कपूर की ऊर्जा – रफी साहब हर अभिनेता के व्यक्तित्व को सटीक रूप से उभार देते थे। उनकी गायकी में शास्त्रीय संगीत, सूफी, ग़ज़ल और लोक संगीत का बेहतरीन मेल देखने को मिलता था।

रफी साहब ने अनगिनत हिट गाने गाए, लेकिन कुछ गाने हमेशा यादगार रहेंगे, जैसे कि – चौदहवीं का चाँद हो (चौदहवीं का चाँद), ओ दुनिया के रखवाले (बैजू बावरा),दिल के झरोखे में (ब्रह्मचारी),ये रेशमी ज़ुल्फें (दो रास्ते), सर जो तेरा चकराए (प्यासा) आदि। मोहम्मद रफी को अपनी गायकी के लिए कई पुरस्कार मिले। उन्हें 6 बार फिल्मफेयर पुरस्कार और 1 बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1967 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से नवाज़ा।
रफी साहब जितने बड़े गायक थे, उतने ही विनम्र इंसान भी थे। वे अपने साथी कलाकारों की मदद करने में कभी पीछे नहीं रहते थे। कहा जाता है कि उन्होंने कई गाने बिना मेहनताना लिए गाए।
27 जुलाई 1980 को मोहम्मद रफी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनका निधन संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति थी। लेकिन उनकी आवाज़ आज भी हर पीढ़ी को मंत्रमुग्ध करती है। मोहम्मद रफी का नाम भारतीय संगीत का पर्याय है। उनकी गायकी ने न केवल भारतीय सिनेमा को एक ऊँचाई दी, बल्कि यह साबित किया कि एक सच्चा कलाकार अपने फन के जरिए हमेशा अमर रहता है। उनकी आवाज़ समय की सीमाओं से परे है, और यह आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा देती रहेगी।

मोहम्मद रफी के 100वें जन्मदिवस पर उनके अद्वितीय योगदान और अमर संगीत को याद करना न केवल एक सम्मानजनक कृत्य है, बल्कि यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत भी है। उनकी आवाज़ ने भारतीय संगीत को एक अलग पहचान दी है और उनकी विरासत सदैव जीवित रहेगी। इस विशेष अवसर पर, हम सभी उनके अद्वितीय योगदान के लिए उन्हें सलाम करते हैं और उनकी अमर धुनों का आनंद लेते हैं।

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