बीजेपी ऐसे लड़ती है चुनाव: बिहार में एनडीए की जीत के पीछे ज़मीनी मेहनत का बड़ा सच।

कुणाल भगत
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि बीजेपी सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं लड़ती, बल्कि चुनाव को एक मैराथन की तरह पूरी रणनीति, संसाधन और ज़मीनी मेहनत के साथ लड़ती है। एनडीए की शानदार जीत के पीछे सिर्फ लहर नहीं, बल्कि महीनों से चलते आ रहे माइक्रो मैनेजमेंट, बूथ-स्तर की तैयारियां और दूसरे राज्यों से आए नेताओं व कार्यकर्ताओं का अथक परिश्रम भी शामिल है।
इस रिपोर्ट में तीन ऐसे दृश्य हैं जो बताते हैं कि बीजेपी चुनाव लड़ती कैसे है—और क्यों जीतती है।
•दृश्य–1: अलीगढ़ का सांसद, बक्सर में एक महीने से डटा।
25 अक्टूबर को बक्सर के एक होटल में जब एक पत्रकार अपनी टीम के साथ डिनर कर रहा था, तभी दूसरी टेबल पर बीजेपी के फटका पहने कुछ नेता बैठे दिखे। उनमें से एक बार–बार उसकी ओर देखते रहे। थोड़ी देर बाद वे पास आए और बोले—
“मैं सतीश गौतम, अलीगढ़ से बीजेपी का सांसद हूं।”
जब उनसे पूछा गया कि वह बक्सर में क्या कर रहे हैं, तो उनका जवाब था—
“इस बार हम बक्सर जीतेंगे। मैं एक महीने से यहां हूं।”
यह दृश्य बताता है कि चुनाव आते ही बीजेपी के सांसद, चाहे वह किसी भी राज्य से हों, क्षेत्र में डेरा डाल देते हैं। नतीजा—बक्सर सीट पर बीजेपी की दमदार जीत।
•दृश्य–2: यूपी के कैबिनेट मंत्री, बिना कैमरे, बिना शोर-शराबे के मैदान में
अगले दिन पटना लौटते वक्त सड़क किनारे झुग्गी बस्तियों में कुछ लोग बीजेपी के पर्चे बांटते दिखे। तभी नजर पड़ी—
स्वतंत्र देव सिंह, यूपी बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री।
कोई कैमरा नहीं, कोई मीडिया नहीं, कोई शो-ऑफ नहीं।
सिर्फ धूल भरी सड़क पर दुकानदारों, मजदूरों और बस्ती वालों से मुलाकात।
एक बड़ा नेता, सड़क के किनारे कुछ कार्यकर्ताओं के साथ घंटों जनसंपर्क कर रहा था—यह बताता है कि बीजेपी की चुनाव शैली सिर्फ सोशल मीडिया या मंचों पर आधारित नहीं, बल्कि गहराई तक जमी है।
•दृश्य–3: गुजरात के कारोबारी, तेघरा की गलियों में डटे।
पहले चरण के मतदान के बाद किशनगंज के एक होटल के बाहर एक सज्जन मिले। उन्होंने खुद को सूरत के कारोबारी बताया। कहा—
“मैं तेघरा में रजनीश कुमार की जीत के लिए महीने भर तैनात था।”
उन्होंने पूरा गणित बताया—कैसे रजनीश कुमार 1.10 लाख से अधिक वोट लाकर बड़ी जीत दर्ज करेंगे।
नतीजा आया—रजनीश कुमार 1,12,000 वोट और 35 हजार की बढ़त के साथ विजयी हुए।
वे बोले—
“अब हम किशनगंज में काम करने आए हैं, गुजरात से सैकड़ों लोग बिहार में चुनाव में लगे हुए हैं।”
बीजेपी की जीत का असली मॉडल: संगठन + संसाधन + समर्पण
एनडीए की जीत की व्याख्या करते वक्त सिर्फ लहर, नाराजगी या जातीय समीकरण देखने से तस्वीर अधूरी रह जाती है।
यह भी समझना होगा कि—
दर्जन भर मुख्यमंत्री सीटों पर कैंप कर रहे थे
दर्जनों कैबिनेट मंत्री गांव–गांव घूम रहे थे
दो सौ से ज्यादा सांसद बूथ पर तैनात थे
गुजरात, यूपी, दिल्ली, कर्नाटक, महाराष्ट्र से हजारों कार्यकर्ता महीने भर मैदान में थे
बीजेपी का चुनाव मॉडल सिर्फ प्रचार नहीं—
यह एक संगठित युद्ध है, जिसमें बूथ से लेकर टॉप लेवल तक हर शख्स अपनी भूमिका निभाता है। नतीजा: बिहार में एनडीए की बम्फर जीत
सबसे मजेदार बात ये पता चली कि अगर आप भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता है और किसी अभियान में लगे है और अगर पार्टी को पता चली कि आप नाखुश होकर कार्य मन से नहीं कर रहे है तो आपको सीधे अमित साह का कॉल किसी भी वक्त आ सकता है। क्योंकि भाजपा का टॉप लीडर भी प्रत्येक कार्यकताओं से जुड़ा रहता है जबकि अन्य पार्टियों में इसका आभाव देखने को मिलता है। कई भाजपा कार्यकर्ताओं से सुना जा सकता है कि चुनाव अभियान के दौरान अमित साह ने उन्हें सीधे कॉल कर पार्टी ऑफिस तलब कर लिया।
चुनाव परिणाम बताते हैं कि जहां दूसरी पार्टियां आखिरी हफ्तों में गतिविधियां बढ़ाती हैं, वहीं बीजेपी महीनों पहले अपने लोगों को मैदान में उतार देती है।
उनकी रणनीति— गली–गली में मौजूदगी, बस्ती–बस्ती तक पहुंच, माइक्रो-मैनेज्ड प्रचार, और सबसे महत्वपूर्ण—जमीनी कार्यकर्ताओं का अथक परिश्रम। इसी मिश्रण ने बिहार में एनडीए को विपक्ष पर बढ़त दिलाई और सीट दर सीट पर मजबूत पकड़ बनाई।
(भाजपा यूपी के कार्यकर्ताओं के इनपुट पर आधारित)



